Jeevan Saaransh
by Sudhir Kaistha
About the book
"विचारों का प्रवाह .......कल कल बहती नदी की निर्मल धारा, शान्त और गम्भीर समुन्दर में उठती लहरों का संगीत जो किनारों को आगोश में भर लेने को उत्सुक तो कभी एक तूफान बन महा विनाश की ओर...... इनसे उठती तरंगों को शब्दों मे पिरोकर विभिन्न कविताओ का एक संकलन ।
इसमें नारी का उत्पीड़न उस पर हो रहे जघन्य अत्याचार और यौन शोषण एवं उन पर रावण की चित्कार भी है। तो वहीं यादों के साये, पर्यावरण और प्रकृति के रंग भी हैं।
अपनी कविता ""जीवन मन्थन"" की प्रारम्भिक पक्तियों में हरिवंश राय बच्चन जी की कविता ""मधुशाला"" , जो कि मैने बचपन में पढी़ थी , के कुछ मूल प्रारम्भिक शब्दों को प्रयोग कर , मैने अलग विचारों के साथ आगे बढ़ाने का प्रयास किया है।
""शान्ति यात्रा"" खालिस्तानि गतिविधियों के दौरान पंजाब में फैली अराजकता को लेकर वर्ष 1987 में सुनील दत्त जी के नेतृत्व निकाली गयी पदयात्रा को लेकर है।
वहीं ""जन आक्रोश"" श्री अन्ना हजारे जी के जन आन्दोलन को लेकर लिखी गई है और ""गरीबी की रेखा"" 2011-12 के दौरान देश की गरीब जनता के हालात को दर्शाने का एक प्रयास।
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"श्री सुधीर कायस्था जी का जन्म हिमाचल प्रदेश के गाँव टीका नगरोटा की खुली वादियों मे 1949 में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से 1969 में कलास्नातक की डिग्री प्राप्त कर वह दिल्ली में ही कार्यरत रहे और अब गाजियाबाद (उ. प्र.) में अपना जीवन गुजार रहे है। अपनी यादों के साये में व पारिवारिक संस्था एस एन के फाउनडेश्न के माध्यम से इन्होने अपने गाँव व सरकारी विद्यालय के विद्यार्थियों से एक अटूट रिश्ता बना रखा है।
स्वामी विवेकानन्द जी के इस अदभुत विचार ""जब तक लाखों लोग भूख व अज्ञानता से पीड़ित जी रहे हैं, मैं हर उस व्यक्ति को इसका जिम्मेदार मानता हूँ, जिसने एक सामाजिक व्यवस्था में शिक्षा ग्रहण कर आज उनकी अनदेखी कर रहा है"" से प्रभावित हो एक मंत्र का पालन कर रहे हैं ""समाज में रह कर, समाज में वापस दो"" ( Pay back to the Society)
उनका मानना है कि हमारी जीवन शैली का मूल-मंत्र, ""मैं भगवान से प्यार करता हूँ "" होना चाहिए। अपनी पुस्तक ""जीवन सारांश "" में उन्होंने अपने अन्तरमन से उठते विचारों को, शब्दों में पिरोकर, सबके सामने रखने का खुले मन से प्रयास किया है।
मस्तानी आँखों से छलकता जाम है,
खुदा के घर से तुमको यह पैगाम है।
कर क़बूल मुझको,
मेरा सुधीर नाम है। "
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